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(1) रिक्त स्थान की पूर्ति उचित शब्द द्वारा कीजिए। कोई भी राष्ट्र नैतिक शिक्षा के बिना, नहीं हो सकता।CRPF-2021


(2) निम्नलिखित में से विलोम शब्द का कौन सा युग्म सही नहीं है?CRPF-2021


(3) निम्नलिखित वाक्य में रिक्त स्थान की पूर्ति उचित शब्द द्वारा कीजिए: न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की____की।CRPF-2021


(4) निम्न में से यौगिक सम्बंधबोधक अव्यय शब्द है।CRPF-2021


(5) निम्नलिखित वाक्य का काल भेद बताइए: मैंने एक महीने पहले नया फोन लिया था।CRPF-2021


(6) वाक्य में रेखांकित पद की वर्तनी ठीक कीजिए।CRPF-2021


(7) निम्नलिखित वाक्य में, शुद्ध शब्द के द्वारा रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए: स्नातक में आप अपने • विषय पढ़ सकते हैं।CRPF-2021


(8) निम्नलिखित वाक्य में कौन सा कारक है "बिल्ली छत से कूद पड़ी।"CRPF-2021


(9) वाक्य के रिक्त स्थान के लिए उपयुक्त विकल्प चुनकर वाक्य पूर्ण करें। भूख से बिलखते गरीब बच्चों को देखकर किसे, नहीं आएगी?CRPF-2021


(10) रात और संध्या के बीच की उपरोक्त वाक्य खंड के लिए एक शब्द चुनिए।CRPF-2021


(11) रिक्त स्थान की पूर्ति उचित शब्द द्वारा कीजिए। उसने गलत काम किया और कमाया।CRPF-2021


(12) निम्नलिखित वाक्य में किस शब्द का प्रयोग अशुद्ध है राजा अपनी ताकत के बल पर जीता है।CRPF-2021


(13) निम्नलिखित में से सही लोकोक्ति का चयन करें।CRPF-2021


(14) रिक्त स्थान की पूर्ति उचित शब्द द्वारा कीजिए। राजाराम मोहन राय बहुत ही __ विचारों के थे, साथ ही उनका दिमाग बहुत जिरह करने वाला था।CRPF-2021


(15) 'उत्साह' शब्द से बना विशेषण शब्द होगा:CRPF-2021


(16) नीचे दिए गये गद्य को पढे और पुछे गये प्रश्नो के उत्तर दे मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि अपने अहं के संपूर्ण त्याग में है। जहाँ यह शुद्ध समर्पण के उदात्त भाव से प्रेरित होकर अपने 'स्व' का त्याग करने को प्रस्तुत होता है, वहीं उसके व्यक्तित्व की महानता परिलक्षित होती है। साहित्यानुरागी जब उच्च साहित्य का रसास्वादन करते समय स्वयं की सत्ता को भुलाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थापित कर लेता है, तभी उसे साहित्यानंद की दुर्लभ मुक्ता मणि प्राप्त होती है। भक्त जब अपने आराध्य देव के चरणों में अपने आपको अर्पित कर देता है और पूर्णत प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है, तभी उसे प्रभु-भक्ति की अलभ्य पूँजी मिलती है। यह विचित्र विरोधाभास है कि कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही एकमात्र सरल और सुनिश्चित उपाय है। यह अत्यंत सरल दिखने वाला उपाय अत्यंत कठिन भी है। भौतिक जगत में अपनी क्षुद्रता को समझते हुए भी मानव हृदय अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार में डूबा रहता है। उसका त्याग कर पाना उसकी सबसे कठिन परीक्षा है। किंतु यही उसके व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि भी है। दूसरे का निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा- आकांक्षाओं और लाभ-हानि को भूलकर उसके प्रति सर्वस्व समर्पण ही एकमात्र माध्यम है इस प्राप्ति का अनिवर्धनीय सुख वहीं चख सकता है, जिसने स्वयं को लुटाना जाना हो। इस सर्वस्व समर्पण से अपनी नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्व समृद्धि और परमानंद कासुख वह अनुरागी चित्त ही समझ सकता है। 'परमानन्द' शब्द में प्रयुक्त संधि का नाम बताइए।CRPF-2021


(17) नीचे दिए गये गद्य को पढे और पुछे गये प्रश्नो के उत्तर दे: मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि अपने अहं के संपूर्ण त्याग में है। जहाँ वह शुद्ध समर्पण के उदात्त भाव से प्रेरित होकर अपने 'स्व' का त्याग करने को प्रस्तुत होता है, वहीं उसके व्यक्तित्व की महानता परिलक्षित होती है। साहित्यानुरागी जब उच्च साहित्य का रसास्वादन करते समय स्वयं की सत्ता को भुलाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थापित कर लेता है, तभी उसे साहित्यानंद की दुर्लभ मुक्ता मणि प्राप्त होती है। भक्त जब अपने आराध्य देव के चरणों में अपने आपको अर्पित कर देता है और पूर्णतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है, तभी उसे प्रभु भक्ति की अलभ्य पूँजी मिलती है। यह विचित्र बिरोधाभास है कि कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही एकमात्र सरल और सुनिश्चित उपाय है। यह अत्यंत सरल दिखने वाला उपाय अत्यंत कठिन भी है। भौतिक जगत में अपनी क्षुद्रता को समझते हुए भी मानव हृदय अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार में डूबा रहता है उसका त्याग कर पाना उसकी सबसे कठिन परीक्षा है किंतु यही उसके व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि भी है। दूसरे का निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा- आकांक्षाओं और लाभ-हानि को भूलकर उसके प्रति सर्वस्व समर्पण ही एकमात्र माध्यम है। इस प्राप्ति का अनिवर्चनीय सुख वही चख सकता है, जिसने स्वयं को लुटाना जाना हो। इस सर्वस्व समर्पण से अपनी नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्व समृद्धि और परमानंद कासुख वह अनुरागी चित्त ही समझ सकता है। निःस्वार्थ और सर्वस्व समर्पण भाव की आवश्यकता किसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक है?CRPF-2021


(18) नीचे दिए गये गए को पढे और पुछे गये प्रश्नों के उत्तर दे मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि अपने अहं के संपूर्ण त्याग में है। जहाँ यह शुद्ध समर्पण के उदात्त भाव से प्रेरित होकर अपने 'स्व' का त्याग करने को प्रस्तुत होता है, वहीं उसके व्यक्तित्व की महानता परिलक्षित होती है। साहित्यानुरागी जब उच्च साहित्य का रसास्वादन करते समय स्वयं की सत्ता को भुलाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थापित कर लेता है, तभी उसे साहित्यानंद की दुर्लभ मुक्ता मणि प्राप्त होती है। भक्त जब अपने आराध्य देव के चरणों में अपने आपको अर्पित कर देता है और पूर्णतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है, तभी उसे प्रभु भक्ति की अलभ्य पूँजी • मिलती है। यह विचित्र विरोधाभास है कि कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही एकमात्र सरल और सुनिश्चित उपाय है। यह अत्यंत सरल दिखने वाला उपाय अत्यंत कठिन भी है। भौतिक जगत में अपनी क्षुद्रता को समझते हुए भी मानव हृदय अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार में डूबा रहता है। उसका त्याग कर पाना उसकी सबसे कठिन परीक्षा है किंतु यही उसके व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि भी है। दूसरे का निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा- आकांक्षाओं और लाभ-हानि को भूलकर उसके प्रति सर्वस्व समर्पण ही एकमात्र माध्यम है। इस प्राप्ति का अनिवर्धनीय सुख वही चख सकता है, जिसने स्वयं को लुटाना जाना हो। इस सर्वस्व समर्पण से अपनी नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्वं समृद्धि और परमानंद कासुख वह अनुरागी चिंत ही समझ सकता है। मनुष्य के लिए किसका त्याग कर पाना सबसे कठिन परीक्षा है ?CRPF-2021


(19) नीचे दिए गये गद्य को पढे और पुछे गये प्रश्नो के उत्तर दे: मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि अपने अहं के संपूर्ण त्याग में है। जहाँ वह शुद्ध समर्पण के उदात्त भाव से प्रेरित होकर अपने 'स्व' का त्याग करने को प्रस्तुत होता है, वहीं उसके व्यक्तित्व की महानता परिलक्षित होती है साहित्यानुरागी जब उच्च साहित्य का रसास्वादन करते समय स्वयं की सत्ता को भुलाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थापित कर लेता है, तभी उसे साहित्यानंद की दुर्लभ मुक्ता मणि प्राप्त होती है। भक्त जब अपने आराध्य देव के चरणों में अपने आपको अर्पित कर देता है और पूर्णतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है, तभी उसे प्रभु भक्ति की अलभ्य पूँजी मिलती है। यह विचित्र विरोधाभास है कि कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही एकमात्र सरल और सुनिश्चित उपाय है। यह अत्यंत सरल दिखने वाला उपाय अत्यंत कठिन भी है। भौतिक जगत में अपनी क्षुद्रता को समझ हुए भी मानव हृदय अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार में डूबा रहता है उसका त्याग कर पाना उसकी सबसे कठिन परीक्षा है किंतु यही उसके व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि भी है। दूसरे का निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा- आकांक्षाओं और लाभ-हानि को भूलकर उसके प्रति सर्वस्व समर्पण ही एकमात्र माध्यम है। इस प्राप्ति का अनिवर्चनीय सुख वहीं चख सकता है, जिसने स्वयं को लुटाना जाना हो इस सर्वस्व समर्पण से अपनी नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्व समृद्धि और परमानंद कासुख वह अनुरागी चित ही समझ सकता है। साहित्यानुरागी पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व कब स्थापित कर लेता है?CRPF-2021